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आईपीओ (IPO) क्या होता है और इसमें कैसे इनवेस्ट किया जाता है...

 

दोस्तों शेयर बाजार अनिश्चितताओं से भरा बाजार है. बाजार (Market) की चाल एक पल में कुछ और होती है तो दूसरे ही पल शेयर बाजार का अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. आप भी अक्सर शेयर बाजार (Stock Market) में इनवेस्टिंग के बारे में जरूर सोचते होंगे, लेकिन फिर आपको लगता होगा कि आख़िर कैसे स्टॉक मार्किट में इनवेस्ट किया जाए?

 

दरअसल शेयर बाजार में इनवेस्टिंग (Investing) की कोई ज्यादा मुश्किल प्रक्रिया नहीं है. बस आपको थोड़ा इसके बारे में पढ़ना होगा और शेयर बाजार पर नज़र रखने की आदत ड़ालनी होगी. शेयर बाजार में इनवेस्टिंग दो तरीकों से की जा सकती है...

 

1. प्राइमरी मार्केट (PRIMARY MARKET)

2. सेकंड्ररी मार्केट (SECONDRY MARKET)

 

प्राइमरी मार्केट में आप आईपीओ (IPO) के जरिए इनवेस्ट (INVEST) करते हैं और सेकंड्री मार्केट में सीधे तौर पर शेयर बाजार में लिस्टिड शेयर में इनवेस्टिंग की जाती है.

 

चलिए आईपीओ (IPO) के बारे में आसान भाषा में समझते हैं...

 

आईपीओ (IPO) क्या होता है और इसमें कैसे इनवेस्ट किया जाता है...

आईपीओ (IPO) क्या होता है?

आईपीओ को इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering) कहते हैं. दरअसल जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर (Share) पब्लिक को ऑफर करती है तो इसे आईपीओ (IPO) कहते हैं. इस प्रक्रिया में कंपनियां अपने शेयर को आम लोगो को ऑफर करती है और यह प्राइमरी मार्केट (primary market) के अंतर्गत होता है. अगर ज्यादा साधारण तरीके से जानना है तो कहेगें कि आईपीओ के जरिए कंपनी फंड इकट्ठा करती है और उस फंड को कंपनी की तरक्की में खर्च करती है. उसके बदले में आईपीओ खरीदने वाले लोगों को कंपनी में हिस्सेदारी मिल जाती है. मतलब जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते है तो आप उस कंपनी के खरीदे गए हिस्से के आप मालिक होते हैं. एक कंपनी एक से ज्यादा ज्यादा बार भी आईपीओ ला सकती है. आमतौर पर कंपनियां कई कारणों से आईपीओ (IPO) लाती है. चलिए इन कारणों को भी विस्तार से जानते हैं...

 

आईपीओ (IPO) लाने के कारण

जब किसी कंपनी को लगता है कि वह लगातार आगे बढ़ रही है और उसे ज्यादा विस्तार की जरूरत है यानि की अब कंपनी को दूसरे शहरों में भी विस्तार करना है और इसके लिए उसे लोगों की भी जरूरत है तो इस स्थिति में कंपनी अपनी आईपीओ जारी करती है. कंपनी के विस्तार के लिए वैसे तो वह बैंक से लोन का सहारा भी ले सकती है, लेकिन बैंक लोन (Bank Loan) को कंपनी को एक निश्चित समय पर निश्चित ब्याज (Interest) के साथ लौटाना भी होता है. जबकि अगर कंपनी आईपीओ (IPO) के जरिए फंड इकट्ठा करती है तो उसे किसी को तो वह पैसा लौटाना पड़ता है और ही किसी तरह का ब्याज ही देना पड़ता है.

 

फ्रेंड्स यह तो हुआ कंपनी का फायदा. अब आईपीओ खरीदने वाले लोगों के फायदे की बात कर लेते हैं. जो भी इनवेस्टर (Investors) आईपीओ में इनवेस्ट करते हैं उन्हें उस खरीदे गए आईपीओ के बदले में कंपनी में कुछ प्रतिशत की हिस्सेदारी मिल जाती है. यानि अगर किसी कंपनी ने कुछ शेयर आईपीओ (IPO) के लिए निकाले हैं और आपने उन शेयर्स का दो प्रतिशत हिस्सा खरीदा है तो आप उस कंपनी के दो प्रतिशत हिस्से के मालिक होते हैं. और इस तरह से आईपीओ से कंपनी और इनवेस्टर दोनों को फायदा होता है.

 

कर्ज कम करने लिए

जब कंपनी ज्यादा कर्ज में होती है तो इस स्थिति में भी कंपनी अपनी आईपीओ जारी करती है. ऐसे में कंपनी किसी बैंक से लोन लेकर कर्ज की भरपाई करने से बेहतर समझती है कि कंपनी के कुछ शेयर बेच दिए जाए और कर्ज का भुगतान किया जाए. ऐसे में कंपनी के कर्ज का भी भुगतान हो जाता है और कंपनी को नए इनवेस्टर भी मिल जाते हैं और इनवेस्टर (Investors) को कंपनी में कुछ हिस्से का मालिक बनने का मौका भी मिल जाता है.

 

किसी भी नए प्रोडक्ट या सर्विस की लॉंच के लिए

आईपीओ (IPO) जारी करने की एक और वजह होती है. कंपनी द्वारा अपने नए प्रोडक्ट्स और सर्विस का लॉन्च करना. जब कोई कंपनी किसी नए प्रोडक्ट्स या सर्विस की शुरूआत करती है तो वह कंपनी चाहती कि उस सर्विस या प्रोडक्ट्स का प्रोमोशन हो और वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे. इसलिए कंपनी आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) जारी करती है.

 

आईपीओ के प्रकार (TYPES OF IPO)

 

आईपीओ (IPO) को दो तरह से बांटा जा सकता है और इसे दो भागों में बांटने का कारण उसकी कीमतों का निर्धारण होता है.

 

फिक्स प्राईस आईपीओ या फिक्स प्राईस इश्यू (Fix Price IPO or Fix Price Issue)

बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO)

 

फिक्स प्राईस आईपीओ (Fix Price IPO)

आईपीओ (IPO) जारी करने वाली कंपनी आईपीओ जारी करने से पहले इनवेस्टमेंट बैंक (Investment Bank) के साथ मिलकर आईपीओ के प्राईस के बारे में चर्चा करती है. इनवेस्टमेंट बैंक के साथ मिटिंग में कंपनी आईपीओ का प्राईस डिसाइड (Decide) करती है. फिर उस फिक्स प्राईस पर ही कोई भी इनवेस्टर आईपीओ (IPO) को सबस्क्राईब कर सकते हैं. और आप केवल उसी प्राइस पर आईपीओ खरीद सकते हैं जो प्राईस निर्धारित किए गए है.

 

बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO)

इसमें कंपनी इनवेस्टमेंट बैंक (Investment Bank) के साथ मिलकर आईपीओ का एक प्राईस बैंड डिसाइड करती है. और जब आईपीओ की प्राईस बैंड डिसाइड हो जाती है उसके बाद ही इसे जारी किया जाता है. फिर इसके बाद डिसाइड किए गए प्राईस बैंड में से इनवेस्टर अपनी बिड सबस्क्राईब (Subscribe) करते हैं. बुक बिल्डिंग आईपीओ (Book Building IPO) के प्राईस बैंड में दो तरह के होते हैं...

 

प्राईस बैंड में अगर आईपीओ का प्राईस कम है तो उसे फ्लोर प्राईस (Floor Price) कहते हैं.

और अगर आईपीओ का प्राईस ज्यादा है तो इसे कैप प्राईस (Cap Price) कहते हैं.

लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि बुक बिल्डिंग आईपीओ में कैप प्राईस (Cap Price) और फ्लोर प्राईस (Floor Price) में 20% का अंतर रखा जा सकता है.

 

आईपीओ (IPO) में इनवेस्ट कैसे किया जाता है?

फ्रेंड्स आईपीओ जारी करने वाली कंपनी अपने आईपीओ को इनवेस्टर्स के लिए 3 से 10 दिनों के लिए ओपन करती है. इसका मतलब कोई भी आईपीओ जब आता है तो उसे कोई भी इनवेस्टर 3 से 10 दिनों के भीतर ही खरीद सकता है. और कोई कंपनी अपने आईपीओ जारी करने की अवधि सिर्फ 3 दिन भी रखती है तो कोई तीन दिन से ज्यादा रखती है.

 

आप इन निश्चित दिनों के भीतर की उस कंपनी की साईट पर जाकर या रजिस्टर्ड ब्रोकरेज के जरिए आईपीओ (IPO) में इनवेस्ट कर सकते हैं. अब अगर आईपीओ फिक्स प्राईस इश्यू है तो आपको उसी फिक्स प्राईस (Fix Price) पर आईपीओ के लिए अप्लाई करना होगा, और अगर आईपीओ बुक बिल्डिंग इश्यू (IPO Book Building Issue) है तो आपको उस बुक बिल्डिंग इश्यू पर ही बिड लगानी होगी.

 

अलॉटमेंट प्रोसेस (Allotment Process)

जब आईपीओ ओपनिंग क्लोज हो जाती है तो कंपनी आईपीओ का अलॉटमेंट (Allotment) करती है. इस प्रोसेस में कंपनी सभी इनवेस्टर्स को आईपीओ अलॉट करती है और इनवेस्टर्स को आईपीओ अलॉट होने के बाद शेयर स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हो जाते हैं. शेयर बाजार (Stock Market) में लिस्ट होने के बाद शेयर सेकेंड्री मार्केट में खरीदे और बेचे जाते हैं. जब तक शेयर, शेयर बाजार में लिस्ट नहीं होते हैं आप उन्हें नहीं बेच सकते हैं. एक बार जब शेयर बाजार (स्टॉक मार्केट) में शेयर लिस्ट हो जाते हैं तो पैसा और शेयर ये दोनों इनवेस्टर के बीच एक्सचेंज होते रहते हैं.

 

एक बार लिस्ट होने के बाद स्टॉक मार्केट टाईमिंग (Stock Market Timing) के हिसाब से आप शेयर (Share) बेच भी सकते हैं और खरीद भी सकते हैं.

 

कोई भी कंपनी जब अपना आईपीओ (IPO) लाने की योजना बनाती है तो उसे सेबी (Securities and Exchange Board of India) के सभी नियमों का पालन करना होता है. और उसे सेबी को आईपीओ लाने के कारणों से लेकर हर छोटी बड़ी बात से अवगत कराना होता है. फिर कंपनी एक रेड हैरिंग प्रोस्पेक्टेस सेबी को देती है.

 

इस रेड हैरिंग प्रोस्पेक्सटस में कंपनी की

बिज़नेस डिलेट (Business Details)

कैपिटल स्ट्रकचर (Capital Structure)

रिस्क फैक्टर (Risk Factor)

रिस्क स्ट्रैटेजी (Risk Strategy)

प्रोमोटर्स एंड मैनेजमेंट (Promoters and Management)

पास्ट फाईनैंशियल डेटा (Past Financial Data)

यें सभी जानकारी होती है. रैड हैरिंग प्रोस्पेक्टस (Red Herring Prospectus) सेबी (SEBI- Securities and Exchange Board of India) की वेबसाइट पर मिल जाता है. और हर कंपनी को सेबी के सभी नियमों और शर्तों को मानना जरूरी होता है.

 

फ्रेंड्स इनवेस्टिंग से पहले रखें कुछ बातों का ख्याल-

किसी भी तरह की इनवेस्टिंग करने से पहले कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखना चाहिए...

इनवेस्टिंग करने से पहले कंपनी की बाकी कंपनियों के साथ भी तुलना कर लेनी चाहिए.

आईपीओ (IPO) लाने वाली कंपनी के रैड हैरिंग प्रोस्पेक्टस को जरूर पढ़ना चाहिए...

इन सभी बातों को ध्यान में रख कर ही इनवेस्टिंग करना सही विचार होता है...

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